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    Nithari scandal: क्या 19 मासूमों की मौत के पीछे एक बड़ा रैकेट था, जो सिर्फ कोली-पंढेरों ने बनाया था?

    Nithari scandal

    Nithari scandal: निठारी हत्याकांड में 19 बच्चों की हत्या कर, उनके शरीर से अंगों को निकालकर उन्हें नाले में क्षत-विक्षत कर दिया गया। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बड़े रैकेट की आशंका व्यक्त की है।

    2006 में उत्तर प्रदेश के नवीनतम शहर नोएडा में 7 मई को एक युवती की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की जाती है। जैसा कि आम तौर पर होता है, पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू कर दी। लेकिन जांच में सामने आई बातें पूरे भारत को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को भी विचलित कर दीं। नोएडा के निठारी गांव में स्थित कोठी डी-5 के पीछे एक नाले से कंकाल मिलने लगे। इस घटना के प्रमुख आरोपियों सुरेंद्र कोली और मोनिंदर पंढेर को करीब तीन दशकों बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरी कर दिया। उन्हें निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी।

    क्या कोली-पंढेर बस एक मोहरा हैं?

    हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि सीबीआई ने जनता का भरोसा धोखाधड़ी किया है। 14 मई 2015 को आरोपी सुरेंद्र कोली ने केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण विभाग की निठारी कांड की जांच रिपोर्ट के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अर्जी दी।

    रिपोर्ट में नोएडा के सीएमओ डॉ. विनोद कुमार ने बताया कि सभी शवों के धड़ गायब थे। शक था कि उनके अंग बेचे गए थे। छोटे बच्चों के अंगों की भी बहुत मांग थी।

    शवों के शरीर से उनके अंगों को अत्यंत चिकित्सकीय तरीके से काटा गया था, इसलिए भी शक हुआ। डॉ. कुमार ने भी शक व्यक्त किया कि शवों के खोए हुए अंगों से ध्यान भटकाने के लिए नरभक्षण का आरोप लगाया गया है।

    हाईकोर्ट ने इस मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि समिति ने मानव अंगों के अवैध कारोबार पर सीबीआई को जांच करने की सिफारिश की थी। वहीं, सीबीआई से नोएडा के अस्पतालों में हुए प्रत्यारोपण का रिकॉर्ड जांचने के लिए कहा गया था और हत्याओं में बड़ी गैंग के शामिल होने की जांच करने के लिए कहा गया था। पंढेर के बंगले ने डी-5 के पड़ोस में डी-6 में रहने वाले डॉक्टर अमित, जो मानव अंगों के अवैध कारोबार में गिरफ्तार किया गया था, का बयान तक नहीं लिया।

    सीबीआई ने सिर्फ कहा कि डी-6 बंगले की जांच की गई, लेकिन कुछ नहीं पाया गया। हाईकोर्ट ने कहा कि यह पर्याप्त नहीं था। मामले में हाईकोर्ट ने कहा कि डॉ. विनोद ने स्पष्ट रूप से कहा था कि एक शव तीन महीने में सड़ने लगता है। उस शव को पूरी तरह से सड़ने में तीन वर्ष लगते हैं।

    ऐसे में, एक साल से भी कम समय पहले कई बच्चे मर चुके थे, फिर भी कुछ ही हड्डियां क्यों मिल रही हैं? सीबीआई ने मानव अंगों के अवैध कारोबार की वजह से बच्चों और महिलाओं के गायब होने की कोई जांच ही नहीं की।

    हाईकोर्ट ने कहा कि कोली ने हत्याओं के दौरान किसी स्वचालित अवस्था में पहुंचने, पीड़ितों को ललचाने, घर में लाने, हत्या करने, सेक्स करने, शरीर के टुकड़े करने, उन्हें पकाकर खाने, बचे हुए अवशेषों को बैग में भरने और नाली में बहाने के दौरान अपने घर का दरवाजा किसी ने नहीं खटखटाया.। उसने 16 लोगों को भी मार डाला।

    हाईकोर्ट ने कहा कि यह सब बहुत विचित्र लगता है। वह इन 16 मौकों में एक बार भी असफल नहीं हुआ। पूरी प्रक्रिया को विश्वास करने योग्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने बंगला नं. डी5 में हत्याएं कीं, लेकिन फॉरेंसिक जांच में खून के कोई निशान नहीं मिले। हाईकोर्ट ने कहा कि सीबीआई दोनों को दोषी साबित नहीं कर पाई। सीबीआई ने इस मामले में पर्याप्त जांच नहीं की।

    जिस तरह से हाईकोर्ट ने इस केस की विवेचना की है, उससे कई प्रश्न उठते हैं। क्या यह मामला मोनिंदर पंढेर या सुरेंद्र कोली पर लगे आरोपों से कहीं अधिक है? सीधे शब्दों में कहें तो, क्या ये पूरा मामला एक बड़े और आसान रैकेट से जुड़ा था? क्या इस गैंग ने पूरे मामले को सुरेंद्र कोली और मोनिंदर पंढेर तक सीमित कर दिया? सुरेंद्र कोली को ‘नरभक्षी’ भी बताया गया।

    पूरे मामले का क्या था

    2006 के आसपास देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा के निठारी में बच्चों की गायब होने की घटनाएं होती थीं। 7 मई 2006 को पुलिस को एक युवती की गुमशुदगी का मामला मिलने पर इसका पर्दाफाश हुआ। मोनिंदर पंढेर ने युवती को नौकरी दिलाने के बहाने फोन किया था।

    युवती इसके बाद घर नहीं गई। युवती के पिता ने नोएडा के सेक्टर 20 थाने में गुमशुदगी की शिकायत की। मामले की जांच में पता चला कि यह सिर्फ एक युवती के गायब होने की खबर नहीं, बल्कि कई बच्चों के गायब होने की खबर है। 29 दिसंबर 2006 को मोनिंदर सिंह पंढेर के घर के पीछे नाले से 19 कंकाल पुलिस ने खोज निकाले। परीक्षण ने बताया कि इनमें बहुत से बच्चे और युवतियां थीं। इसके बाद मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र सिंह कोली को गिरफ्तार कर लिया गया।

    नोएडा के निठारी में विदेशी पत्रकार मामले को कवर करने के लिए पहुंचने लगे और विश्व भर में इस क्रूर घटना की खबर फैल गई। सरकार पर बढ़ते दबाव के कारण मामला सीबीआई को भेजा गया।

    इंसाफ के इंतजार में कितने साल?

    8 फरवरी 2007 को सीबीआई ने सुरेंद्र कोली और पंढेर को 14 दिन की सीबीआई हिरासत में भेजा। पंढेर को मई 2007 में अपहरण, दुष्कर्म और हत्या के मामले में आरोपमुक्त कर दिया गया। उन्हें दो महीने बाद सीबीआई ने फिर से सह अभियुक्त बनाया। 13 फरवरी 2009 को पंढेर और कोली को 15 वर्षीय किशोरी के अपहरण, दुष्कर्म और हत्या के मामले में सीबीआई कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई। ये पहली बार था जब इन दोनों आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी।

    3 सितंबर 2014 को कोली पर मौत का वारंट लगाया गया। कोली को 4 सितंबर 2014 को मेरठ जेल में फांसी देने के लिए भी भेजा गया। 12 सितंबर 2014, इन दोनों के लिए फांसी की आखिरी रात हुई। उस रात डेथ पेनल्टी लिटिगेशन ग्रुप ने कोली को मृत्युदंड देने पर पुनर्विचार याचिका दी। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट भेजा।

    12 सितंबर 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने सुरेंद्र कोली की फांसी की सजा पर 29 अक्टूबर तक की रोक लगा दी। 28 अक्टूबर 2014 को सुरेंद्र कोली की फांसी पर पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी। दोनों की दया याचिका भी राष्ट्रपति ने खारिज कर दी।

    मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.के.एस. बघेल ने कोली की मौत की सजा को लागू करने पर रोक लगाते हुए कहा कि उसकी दया याचिका पर निर्णय लेने में “अत्यधिक देरी देखते हुए” यह असंवैधानिक होगा। 2010 से दोनों ने लगातार 14 बार अपनी सजा के खिलाफ अपील की। जस्टिस मिश्रा और जस्टिस रिजवी की पीठ ने 2023 से एक साथ सुनवाई शुरू की। वहीं, 16 अक्टूबर 2023 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुरेंद्र कोली को 12 मामलों में दोषमुक्त कर दिया, जबकि मोनिंदर सिंह पंढेर को 2 मामलों में दोषमुक्त कर दिया।

    12 वर्षों में 134 तारीखें

    2010 से सुरेंद्र कोली और मोनिंदर पंढेर ने फांसी की सजा के खिलाफ अपीलें दाखिल की हैं। उनकी अपीलों पर विभिन्न खंडपीठों में बहस हुई। इसके लिए कुल 134 तिथियां दी गईं। विभिन्न कारणों से एक भी अपील पर निर्णय नहीं लिया गया।

    पीड़ितों को न्याय की प्रतीक्षा

    दोनों आरोपियों को बरी कर दिया गया है, अब सवाल उठता है कि इन 19 हत्याओं का आरोपी कौन है? साथ ही हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद न्याय के इंतजार में बैठे उन बच्चों के माता पिता भी अपनी उम्मीद खो चुके हैं। नोएडा में एक हत्याकांड में मारे गए एक बच्चे के पिता ने द हिंदू की एक खबर के अनुसार सोमवार को आरोपियों को बरी करने की खबर सुनते ही पंढेर के बंगले पर जोर से एक ईंट फेंकी। वास्तव में, बच्चे के पिता को आरोपियों के छूटने से निराशा हुई।

    63 वर्षीय झब्बू लाल और 60 वर्षीय सुनीता देवी इस फैसले से बहुत दुखी हैं क्योंकि वे 14 साल की बेटी को इस घटना में खो चुके हैं। बीबीसी से हुई बातचीत में उन्होंने कहा, “हम इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं। एक या दो मर्डर करने वालों को क्या सजा मिल सकती है जब कोई व्यक्ति एक के बाद एक कई बच्चों को मारकर बरी हो सकता है?

    इस मामले में अब तक झब्बू लाल ने चार लाख रुपये खर्च किए हैं। साथ ही, उन्होंने इंसाफ की लड़ाई लड़ने के लिए अपनी जमीन भी बेच दी। इस सीरियल किलिंग में अपने बच्चों को खो चुके माता-पिता की निराशा भी स्पष्ट है।

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