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    Nark Chaturdashi 2023: रूप चतुर्दशी पर इन कामों से रूप निखरेगा; जानिए नरक चतुर्दशी से जुड़ी संपूर्ण जानकारी

    Nark Chaturdashi 2023 रूप चतुर्दशी पर इन कामों से रूप निखरेगा; जानिए नरक चतुर्दशी से जुड़ी संपूर्ण जानकारी

    Nark Chaturdashi 2023: नरक चतुर्दशी को नरक चौदस, छोटी दिवाली, रूप चौदस या नरक चतुर्दशी भी कहते हैं। दिवाली से एक दिन पहले इसे मनाया जाता है। लेकिन इस साल दिवाली और रूप चतुर्दशी एक ही दिन मनाई जाएगी।

    2023 में नरक चतुर्दशी: शास्त्रों में नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है, छोटी दीपावली कृष्ण पक्ष को नरक, यम या रूप चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन यमराज की पूजा करने और उनके लिए व्रत करने का विधान है।

    ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस वर्ष 12 नवंबर 2023 को रूप चतुर्दशी होगी। इस समय घरों में अभ्यंग स्नान होता है। सूर्योदय से पहले सभी लोग उठकर स्नान करेंगे और पूजन करेंगे। इस दौरान लोग स्नान करेंगे और उबटन लगाएंगे। यह पर्व महिलाओं के लिए अलग होगा। वास्तव में, महिलाएं सज-संवरकर पूजन करेंगे। इस दौरान सड़कों, घरों और इमारतों में दीपावली जलेगी। शाम होने पर वातावरण शांत होने लगेगा।

    वास्तव में, रूप चतुर्दशी का मत है कि इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने से लोगों को नरक की यातनाएं नहीं भोगनी पड़ती। इस दिन लोग भी उबटन से स्नान करते हैं। स्नान के बाद पूजा की जाती है। हल्दी मिले आटे के दिये को पांव लगाना प्रतीकात्मक है। श्रद्धालु महिलाएं रंगोली के रंगों से घर आंगन को सजाती हैं। इस दिन लोगों के घर वृंदनवार दीपों से रोशन होते हैं। लक्ष्मी को रूप चतुदर्शी के अलगे दिन कार्तिक अमावस्या पर पूजा जाता है। इसलिए यह दीपावली की शुरुआत है। रूप चतुर्दशी पर स्नान करते समय लोग पटाखे चला देते हैं।

    ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि इसी दिन महाबली हनुमान का जन्म हुआ था। यही कारण है कि आज भी बजरंगबली की विशेष पूजा की जाती है। शास्त्रों में कहा गया है कि धन की देवी मां लक्ष्मी पवित्र और सुंदर घरों में रहती हैं। लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए लोग घरों को साफ करते हैं और सजावट करते हैं, इसका मतलब यह भी है कि वे नरक, यानी बुराई, को समाप्त करते हैं। नरक चतुर्दशी के दिन घर को साफ करना अनिवार्य है। घर की सफाई करने के साथ-साथ अपने रूप और सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए शरीर पर उबटन लगाकर स्नान करना भी आवश्यक है।इस दिन रात को तेल या तिल के तेल के चौबीस दीपक जलाने का रिवाज है। नरक चौदस, रूप चतुर्दशी या छोटी दीवाली, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में मनाई जाती है।

    धन देवी लक्ष्मी है। धन केवल धन नहीं है। धन का भी कारक तन-मन की स्वच्छता और स्वस्थता है। लक्ष्मी, धन और धान्य की देवी, स्वच्छता से बहुत प्यार करती है। धन के नौ प्रकार हैं: प्रकृति, पर्यावरण, गोधन, धातु, तन, मन, आरोग्यता, सुख, शांति और समृद्धि। नरक चतुर्दशी के दिन घर के बाहर यम दीपक जलाने की परंपरा है, जिससे लोगों को लंबी उम्र मिलती है। गृह स्वामी यम के नाम का दीपक जलाता है जब घर के सभी लोग नरक चतुर्दशी की रात आते हैं।

    ज्योतिषाचार्य ने बताया कि चतुर्दशी तिथि को भगवान विष्णु ने 16 हजार कन्याओं को मुक्ति दी और माता अदिति के आभूषण चुराकर ले जाने वाले नरकासुर को मार डाला। यह भी शारीरिक सज्जा और अलंकार का दिन माना जाता है। रूप चतुर्दशी भी इसका नाम है। महिलाएं इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में हल्दी, चंदन और सरसों का तेल मिलाकर उबटन बनाकर स्नान करके अपना रूप निखारेंगी। नरक चतुर्दशी कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। नरक चतुर्दशी को कई नामों से भी पुकारा जाता है, जैसे नरक चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी और नरक चौदस। यह दीपावली से पहले मनाया जाता है, इसलिए इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है। इस दिन यमराज, मौत का देवता, पूजा जाता है। घर के कोनों में दीपक जलाकर अकाल मृत्यु से छुटकारा पाया जाता है।

    चतुर्दशी तिथि -11 नवंबर 2023 को दोपहर 01:58 बजे से शुरू होगी।

    चतुर्दशी समाप्ति- 12 नवंबर 2023 को दोपहर 02:44 बजे

    अभ्यंग स्नान- 12 नवंबर 2023 को सुबह 05:28 से 06:41 तक होगा।

    नरक चतुर्दशी पर हनुमान की पूजा कैसे करें?

    ज्योतिषाचार्य ने बताया कि माता अंजना ने नरक चतुर्दशी के दिन भगवान हनुमान को जन्म दिया था। भक्त इस दिन हनुमान जी को दुख और भय से छुटकारा पाने के लिए पूजते हैं। इस दिन हनुमान चालीसा और अष्टक पढ़ना चाहिए।

    नरक चतुर्दशी को क्यों कहते हैं रूप चतुर्दशी?

    ज्योतिषाचार्य ने बताया कि एक राजा हिरण्यगभ ने राज्य छोड़कर तपस्या करने का निर्णय लिया।उनके शरीर में वर्षों तक तपस्या करने से कीड़े पड़ गए। हिरण्यगभ इससे दुखी होकर नारद मुनि से अपना दर्द बताया। राजा ने नारद मुनि से कहा कि कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन अपने शरीर पर लेप लगाकर सुबह स्नान करके रूप के देवता श्री कृष्ण की पूजा करें। ऐसा करने से सौन्दर्य फिर से जीवित होगा। सब कुछ राजा ने वैसा ही किया जैसा नारद मुनि ने कहा था। इस दिन को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं क्योंकि राजा फिर से सुंदर हो गए।

    पौराणिक कथा

    जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दैत्यराज बलि से तीन पग जमीन मांगी और तीनों राज्यों को नाप लिया, तो बलि ने प्रभु से एक वरदान मांगा। यदि आप मुझसे खुश हैं, तो मुझे एक वरदान देकर कृतार्थ कीजिए। राजा, भगवान वामन ने पूछा: क्या आप वरदान मांगना चाहते हैं? दैत्यराज बलि ने कहा कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक आपने मेरा पूरा देश नाप लिया है, इसलिए जो लोग मेरे राज्य में चतुर्दशी के दिन यमराज के लिए दीपक जलाएं। यम को दंड नहीं देना चाहिए, और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का पर्व मनाए, लक्ष्मी को कभी घर से बाहर नहीं छोड़ना चाहिए।

    राजा बलि की प्रार्थना सुनकर भगवान वामन ने कहा, “राजा! मेरा वरदान है कि जो व्यक्ति चतुर्दशी के दिन नरक के स्वामी यमराज को दीपक दिखाएगा, उनके पितर कभी नरक में नहीं रहेंगे और जो लोग इन तीन दिनों में दीपावली मनाएंगे, मेरी प्यारी लक्ष्मी कहीं नहीं जाएगी।” भगवान वामन ने राजा बलि को यह वरदान दिया था. नरक चतुर्दशी के दिन यमराज के निमित्त व्रत, पूजन और दीपावली का प्रचलन आज तक जारी है।

    श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था

    ज्योतिषाचार्य ने कहा कि नरक चतुर्दशी का पर्व मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं, जिनमें से एक नरकासुर की हत्या की है। कथा कहती है कि प्रागज्योतिषपुर का राजा नरकासुर था। उसने अपनी शक्ति से सभी देवताओं, जैसे इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु आदि को परेशान कर दिया। वह भी संतों को परेशान करने लगा। महिलाओं को दुर्व्यवहार करने लगा। देवता और ऋषिमुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए जब उसका अत्याचार बहुत बढ़ गया। जबकि भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नरकासुर से छुटकारा दिलाने का वादा किया था, नरकासुर को एक स्त्री के हाथों मरने का श्राप लगाया गया था। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाकर नरकासुर को मार डाला। इस तरह, श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवताओं और संतों को उसके भय से बचाया। लोगों ने उसी की खुशी में कार्तिक अमावस्या के दूसरे दिन दीएं जलाया। तब से दीपावली और नरक चतुर्दशी दोनों त्योहार मनाने लगे।

    रूप चतुर्दशी का महत्व

    ज्योतिषाचार्य ने कहा कि रूप चौदस पर व्रत भी महत्वपूर्ण है। रूप चौदस पर व्रत रखने से भगवान श्रीकृष्ण सौंदर्य देते हैं। रूप चतुदर्शी के दिन सुबह उठकर तिल के तेल से मालिश करके पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर नहाना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु और कृष्ण को देखना चाहिए। इससे पापों का नाश होता है और सौंदर्य मिलता है।

    रूप चौदस की रात, घर का सबसे बुजुर्ग घर में एक दिया जलाकर पूरे घर में घूमता है और फिर उसे कहीं दूर ले जाकर रखता है। यम दीया है। इस समय घर के बाकी लोग अपने घर में रहते हैं। माना जाता है कि इस दिए को पूरे घर में घुमाकर निकालने से सभी बुरी शक्तियां बाहर निकल जाती हैं।

    यह कार्य अवश्य करें

    ज्योतिषाचार्य ने कहा कि इस दिन घर की सफाई करते समय हर टूटा-फूटा सामान बाहर फेंक देना चाहिए। यमराज का नरक खाली पेंट के डिब्बे, रद्दी, टूटे-फूटे कांच या धातु के बर्तन, बेकार पड़ा फर्नीचर और अन्य गैर-उपयोगी वस्तुएं होती हैं। इसलिए ऐसे बेकार सामान घर से निकाल देना चाहिए।

    • नहाने से पहले मालिश करें: दक्षिण भारत में आज सुबह जल्दी उठकर तेल से पूरे शरीर की मालिश करने की परंपरा है। अगर आप पुराने नियमों को नहीं मानते हैं, तो भी आप आज ये काम कर सकते हैं। वैसे भी, नववर्ष की छुट्टी के बाद आपके शरीर को मालिश की सबसे अधिक जरूरत है।
    • उबटन लगाएं: ज्योतिषाचार्य ने बताया कि श्री कृष्ण का शरीर नरकासुर का खून साफ करने के लिए उबटन लगाया गया था। इस दिन उबटन लगाने की परंपरा शुरू हुई है। वैसे भी हर कोई त्योहारों पर सुंदर दिखना चाहता है।
    • मिठाई, स्नैक्स बनाएं: आपने कल के लिए तय किए गए मेनू के कुछ आइटम्स, स्नैक्स या मिठाई आज ही बना लें। वैसे भी, दिवाली विशिष्ट भोजनों की सूची काफी लंबी है। यही कारण है कि आज कुछ काम तैयार करने से कल का कार्यभार कम होगा।
    • घर की सजावट करें: ज्योतिषाचार्य ने कहा कि धनतेरस की खरीददारी और घर की साफ-सफाई के बाद अब सजावट का समय है। तो नए पर्दे और बेडशीट्स लेकर घर को साफ करें। लाइट्स और खूबसूरत कैंडल्स घर को सजाएं। अगर आप कुछ ट्रेडिशनल करना चाहते हैं, तो आज भी दीये जलाने और रंगोली बनाने का नियम है।
    • मित्रों और परिचितों से मुलाकात करें: फोन पर त्योहार की शुभकामनाएं देने से बढ़िया है किसी को व्यक्तिगत रूप से बधाई और तोहफे देना। इसलिए आज आपके दूर रहने वाले दोस्तों से मिलने जाएं। दिवाली की पूजा और भोजन के बीच अक्सर दूर दराज के लोगों से मिलना संभव नहीं होता।
    • इस दिन सायं चार बत्ती वाला मिट्टी का दीपक पूर्व दिशा में रखें और “दत्तो दीप: चतुर्दश्यो नरक प्रीतये मया। चतुर्वर्ति समायुक्त: सर्व पापा न्विमुक्तये।।” नए पीले कपड़े पहनकर यम का पूजन करें और मंत्र का जाप करें। यदि कोई इन बातों पर अमल करता है तो उसे अकाल मृत्यु या नरक की यातनाओं का भय नहीं रहता।

    ऊं यमाय नम:, ऊं धर्मराजाय नम:, ऊं मृत्यवे नम:, ऊं अन्तकाय नम:, ऊं वैवस्वताय नम:, ऊं कालाय नम:, ऊं सर्वभूतक्षयाय नम:, ऊं औदुम्बराय नम:, ऊं दध्राय नम:, ऊं नीलाय नम:, ऊं परमेष्ठिने नम:, ऊं वृकोदराय नम:, ऊं चित्राय नम:, ऊं चित्रगुप्ताय नम:।

    पूजन विधि 

    ज्योतिषाचार्य ने कहा कि इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर शरीर पर तेल या उबटन लगाकर मालिश करने के बाद स्नान करना चाहिए। माना जाता है कि नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय होने के बाद नहाने वाले व्यक्ति को वर्ष भर में किए गए शुभ कार्यों का फल नहीं मिलेगा। सूर्योदय से पहले स्नान करके हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें। ऐसा करने से वर्ष भर के पाप मिट जाते हैं। इस दिन विशेष पूजा की जाती है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं-

    पहले एक थाल को सजाकर उसमें एक चौमुख दिया जलाकर सोलह छोटे दीप डालें. फिर रोली खीर, गुड़, अबीर, गुलाल और फूलों से देवता की पूजा करें। इसके बाद अपने कार्यस्थल को पूजें। गणेश और लक्ष्मी को पूजा करने के बाद सभी दीयों को घर के अलग-अलग स्थानों पर रखें और उनके सामने धूप जलाएं।इसके बाद यमराज, यम देवता, के लिए संध्या समय दीपक जलाते हैं। विधि-विधान से पूजा करने पर व्यक्ति प्रभु को सभी पापों से छुटकारा पाता है।

    यम-तर्पण

    ज्योतिषाचार्य ने कहा कि नहाने के बाद साफ कपड़े पहनकर तिलक लगाकर दक्षिण की ओर मुख करके निम्नलिखित मंत्रों से प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन जलांजलि देनी चाहिए। यह यम-तर्पण है। इससे वर्ष भर के पाप बर्बाद होते हैं- चाहे उनके माता-पिता जीवित हों या मर चुके हों, सभी को इस प्रकार तर्पण करना चाहिए। फिर शाम को यमराज को दीपक दिखाने का विधान है। यह भी उचित है कि नरक चतुर्दशी पर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाए, क्योंकि इसी दिन उन्होंने नरकासुर को मार डाला था। इस दिन जो भी विधिपूर्वक भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करता है, उसके मन से सभी पाप दूर हो जाते हैं और अंत में वैकुंठ में जाते हैं।

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